समय रहते यदि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को रोकने के प्रभावी कदम नहीं उठाए गए तो महज 25 वर्षों में तमिलनाडु के घने जंगल शुष्क रेगिस्तानी (Desert) जंगलों में तब्दील हो जाएंगे, जबकि पूर्वी-पश्चिमी घाट कंटीली झाडिय़ों में। अन्ना विश्वविद्यालय के जलवायु परिवर्तन और आपदा प्रबंधन केंद्र की मसौदा रिपोर्ट के अनुसार तमिलनाडु में मुख्य रूप से सदाबहार और पर्णपाती वन हैं। जलवायु प्रभावों के चलते इसमें 2050 तक पश्चिमी और पूर्वी घाट के वनों में क्रमश: 32त्न और 18त्न की कमी हो सकती है। साथ ही कांटेदार जंगल 71 फीसदी बढ़ सकते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि वन क्षेत्रों में यह चिंताजनक गिरावट उच्च तापमान, परिवर्तित वर्षा पैटर्न और मानसून के बाद के मौसम में लंबे समय तक शुष्क रहने के कारण है।
25 वर्ष में 600 वर्ग किमी घट गए सदाबहार वन
1985-2014 के दौरान लगभग 1,880 वर्ग किमी क्षेत्र सदाबहार वनों से आच्छादित था, लेकिन महज 25 साल में यह क्षेत्र घटकर 1,280 वर्ग किमी रह जाएगा। पर्णपाती वन भी 13,394 वर्ग किमी से घटकर 10,941 वर्ग किमी रह जाएंगे। इसके साथ ही कांटेदार जंगल 4,291 वर्ग किमी से बढकऱ 7,344 वर्ग किमी हो जाएंगे। रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि सदाबहार और पर्णपाती वनों दोनों के लिए आवास उपयुक्तता (हैबिटेट सुटेबिलिटी) में अनुमानित परिवर्तन जलवायु परिवर्तन के कारण पूर्वी और पश्चिमी घाट की अधिक ऊंचाई पर होने वाली गर्मी के कारण हो सकता है। वे स्थान जो पहले कांटेदार वृक्ष प्रजातियों के लिए सर्वथा उपयुक्त नहीं थे, अब उनके लिए उत्तम भूमि बन जाएंगे। यह इस बात की ओर इंगित करता है कि पारिस्थितिकी तंत्र तमिलनाडु के अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जेरोफाइटिक अनुकूलन (गर्म और शुष्क) की ओर बढ़ रहा है।
कहां, कितनी हरियाली घटेगी
13 पूर्वी घाट जिलों में से तिरुवन्नामलै, वेलूर और तिरुपत्तूर को क्रमश: 281 वर्ग किमी, 202 वर्ग किमी और 120 वर्ग किमी कांटेदार जंगल हो जाएंगे और इतने ही क्षेत्र में पर्णपाती जंगल खो देंगे। 13 पश्चिमी घाट जिलों में इरोड, तिरुनेलवेली और तिरुपुर में क्रमश: 184 वर्ग किमी, 120 वर्ग किमी और 100 वर्ग किमी के कांटेदार जंगल होंगे। ये ऐसे विशाल क्षेत्र हैं, जहां सदाबहार और पर्णपाती वन नष्ट हो जाएंगे।
17 जलवायु पैरामीटर
पौधों के जीवन से जुड़े 17 जलवायु पैरामीटर हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण पेड़ों की आवास उपयुक्तता बदल जाएगी। यह अत्यधिक वर्षा, सूखा, तीव्र तापमान और अन्य के संयुक्त प्रभावों के कारण है। ये पौधों से सहसंबंधित हैं।
डॉ. कुरियन जोसेफ, निदेशक, जलवायु परिवर्तन और आपदा प्रबंधन केंद्र
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ऐसे बचा सकते हैं हरियाली
मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ाकर, कटाव रोककर मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करने की सिफारिश की गई है। इसके अलावा पहाड़ी क्षेत्रों में आद्र्रभूमि को संरक्षित करने, भविष्य में वनीकरण परियोजनाओं में स्थानीय वृक्ष प्रजातियों का उपयोग करके बहुस्तरीय छतरियों वाले पेड़ लगाने, आग लगने वाले क्षेत्रों में आग के प्रसार को रोकने के लिए बाधाएं पैदा करने और गैर-देशी पौधों को हटाने की सिफारिशें की गई हैं जो पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचा सकते हैं।